मुहब्बत ही नहीं काफी कड़ा तेवर जरूरी है
चुभे जो आंख को सबकी वो अब मंजर जरूरी है ।।
उड़ाने ऊँची हों तो होंसला औ सब्र भी रखना
समन्दर की फतह को साथ में लंगर जरूरी है ।।
जमाना नर्म हर लहजे को कायरता समझता है
कहां तक हाथ जोड़ें हाथ अब खंजर जरूरी है ।।
सुना है की दीवारों के भी शायद कान होते हैं
सुनें खामोशियां जो वो दीवार औ दर जरूरी है ।।
तुम्हारे गम को पाला है फफोले हो गये दिल में
तुम्हीं आ जाओ जख्म ऐ दिल को चारागर जरूरी है ।।
विपिन चौहान"मन"
चुभे जो आंख को सबकी वो अब मंजर जरूरी है ।।
उड़ाने ऊँची हों तो होंसला औ सब्र भी रखना
समन्दर की फतह को साथ में लंगर जरूरी है ।।
जमाना नर्म हर लहजे को कायरता समझता है
कहां तक हाथ जोड़ें हाथ अब खंजर जरूरी है ।।
सुना है की दीवारों के भी शायद कान होते हैं
सुनें खामोशियां जो वो दीवार औ दर जरूरी है ।।
तुम्हारे गम को पाला है फफोले हो गये दिल में
तुम्हीं आ जाओ जख्म ऐ दिल को चारागर जरूरी है ।।
विपिन चौहान"मन"